अभी मुझमें कहीं, बाक़ी थोड़ी सी है ज़िन्दगी
जगी धड़कन नयी, जाना जिंदा हूँ मैं
तो अभी
कुछ ऐसी लगन, इस लम्हें में है
ये लम्हां कहाँ था मेरा
अब है
सामने, इससे छू लूं ज़रा
मर जाऊं या जी लूं ज़रा
खुशियाँ चूम लूं, या रो लूं
ज़रा
मर जाऊं या जी लूं ज़रा
धूप में जलते ही तन को, छाया पेड़ की मिल गयी
रूठे बच्चे की हंसी जैसे, फुसलाने
से फिर खिल गयी
कुछ ऐसा ही अब महसूस दिल को हो रहा है
बरसों के पुराने ज़ख्म
पे मरहम लगा सा है
कुछ एहसास है, इस लम्हें में है
ये लम्हां कहाँ था मेरा
अब है सामने...
डोर से टूटी पतंग जैसी, थी ये जिंदगानी मेरी
आज हो कल हो मेरा ना हो
हर दिन
थी कहानी मेरी
इक बंधन नया पीछे से अब मुझको बुलाये
आने वाले कल की क्यूँ
फिकर मुझको सता जाए
इक ऐसी चुभन इस लम्हें में है
ये लम्हां कहाँ था
मेरा
अब है सामने...
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