उन रासतों से जो गुजरे दोबारा,
तो ऐसा लगा जैसे अनजान थे हम,
बहोत ढूढना चाहा खुद को मगर,
उन रासतो गुमनाम थे हम,
जो छोड़ी थी यादें, जो छूटी थी बातें,
वो जैसे कहीं दफ्न सी हो गई थीं,
जो हवाओ में रहती थी खुशबु हमारी,
वो खुशबु भी जाने कहा खो गई थी,
जो बनाया था हमने कभी आशियाना,
उसी आशियाने में मेहमान थे हम,
उन रासतो से जो गुजरे दोबारा,
तो ऐसा लगा जैसे अनजान थे हम ....
1 comment:
achccha hai jari rakhiye.
------------------------"VISHAL"
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