कि पूरी हो हर आरजू दिल की,
वो बचे हुए अरमान इंसान के,
जिन्हें वो चाहता है पूरा करना,
मगर कर नहीं पता,
कभी बच्चों के लिए,
कभी परिवार के लिए,
कभी बीवी के लिए,
घोंट देता है वो गला अपने अरमानों का ,
उनके लिए जिन्हें वो स्वयं से ज्यादा चाहता है,
मगर देख कर बुदापे में वही इंसान सोचता है,
कि काश कर लिए होते मैंने पूरे ,
वो अपने अधूरे अरमान,
वो दिल कि तमन्नाएं ,
जिन्हें करने से मिल सकती थी,
आत्मा को खुशी,
जब देखता है अपने बच्चों को,
जो बड़े होकर उसको पूछते नहीं,
जिंदगी की छोटी बड़ी खुशियों में,
जब देखता है अपने परिवार वालों को,
टंगे हुए ,एक फोटो फ्रेम में, सामने की दीवार पर,
पाता है मुस्कुराता हुआ उन्हें, उस इंसान पर,
कि देखो इसने भी वही दोहराया जो हमने किया था,
और पछता रहा है आज , हमारी तरह,
जैसे कभी हम पछताए थे देख कर दीवार पर,
अपने प्रिय जनों को लटके हुए,
फोटो-फ्रेम पर.............
-भावेश कुमार चौहान
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