मुद्दत से जिस के वास्ते दिल बे-करार था
वो लौट कर न आया मगर इंतज़ार था,
जो हमसफ़र था छोड़ गया राह मैं मुझे
मैं फँस गया भंवर मैं वो दरिया के पार था,
मंजिल करीब आई तो तुम दूर होगये
इतना तो तुम बताओ के यह कैसा प्यार था
चिलमन गिरदी यह किस ने दोनों के दरमियाँ
न वोह सकूं से बता न मुझ को करार था
यह मुख्तसर सा हाल है रुखसत के वक़्त का
आँखों मैं आंसू और दिल बेकरार था
यह बात उमर भर समझ न पाया मैं
क्यूँ दिल मेरा उस का तलबगार था
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